नोबल पुरस्कार प्राप्त रूसी लेखक इवान बूनिन की पाँच सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ
सान फ़्राँसिस्को वाले साहब (1915)
एक अज्ञात अमीर सज्जन ’अटलाण्टिस’ जलपोत पर सवार होकर इटली की यात्रा पर पहुँचते हैं, लेकिन अचानक कैपरी द्वीप पर पहुँचकर उनका देहान्त हो जाता है। उनका मृत शरीर जहाज़ पर सवार सभी लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। उनके परिवार को भी यह नहीं मालूम कि उनके शव का क्या किया जाए। अमरीका वापिस लौटते हुए उनका शरीर प्रथम श्रेणी के केबिन में नहीं, बल्कि जलपोत के तल में उस जगह पर पड़ा रहता है, जहाँ जहाज़ की बड़ी-बड़ी और भारी मशीनें काम करती हैं।
इवान बूनिन के समकालीन आलोचक अब्राम देरमन ने इस कहानी-दृष्टान्त की चर्चा करते हुए लिखा — चेख़फ़ का देहान्त हुए दस साल हो चुके हैं, अगर इस दौर में उन रचनाओं को छोड़ दिया जाए, जो लेफ़ तलस्तोय की मृत्यु के बाद रूसी भाषा में सामने आई थीं, तो ’सान फ़्राँसिस्को वाले साहब’ जैसी कोई रचना इस बीच हमें देखने को नहीं मिली है।
इवान बूनिन
मीत्या की चाहत (1924)
मीत्या की प्रेमिका कात्या अभिनेत्री बनना चाहती है और अभिनय का प्रशिक्षण ले रही है। थोड़ी बड़ी होने पर वह परिपक्व हो जाती है और मीत्या की बचपने भरी बातों की खिल्ली उड़ाती है। मीत्या उसके प्रेम में पागल है और ईर्ष्या में डूबता-उतराता रहता है। इस प्रेम और अपनी ईर्ष्या पर काबू पाने के लिए मीत्या मस्क्वा छोड़कर गाँव मे रहने के लिए चला जाता है। वहाँ वह एक झोंपड़ी में एक ग्रामीण बाला के शारीरिक संसर्ग में आता है और फिर अपनी इस कामुकता के लिए ख़ुद को कोसता रहता है। कात्या उसे एक पत्र लिखती है कि वह एक थियेटर के निदेशक से प्यार करने लगी है और मीत्या और उसके बीच अब कोई सम्बन्ध बाक़ी नहीं रह गया है। मीत्या यह पत्र पाकर आत्महत्या कर लेता है।
इवान बूनिन की इस रचना पर टिप्पणी करते हुए मित्र और दार्शनिक फ़्योदर स्तिपून ने लिखा था — ’मीत्या की चाहत’ नामक अपने इस उपन्यास में बूनिन ने न सिर्फ़ अपने मन की भावनाओं में उलझ जाने वाले एक छात्र के जीवन की कहानी लिखी है, बल्कि उन्होंने दो व्यक्तियों के बीच पैदा होने वाली हर तरह की प्रेमभावना की त्रासदी को भी अभिव्यक्त किया है। यह उपन्यास एक तरह से कामुकतापूर्ण उपन्यास माना जा सकता है।
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शापित दिन (1925-26)
बोल्शेविकों और रूसी समाजवादी क्रान्ति के बाद रूस में स्थापित हुई सोवियत सत्ता को न स्वीकारने वाले इवान बूनिन की सहानुभूति कम्युनिस्ट विरोधी श्वेत सेना के साथ थी। इसीलिए 1920 में बूनिन रूस छोड़कर फ़्राँस चले गए थे। ’शापित दिन’ उनकी डायरी के उन्हीं दिनों के पन्ने हैं, जिन्हें रूस के इतिहास में अराजक और जटिल वर्ष माना जाता है। उनकी इस डायरी के कुछ हिस्से पेरिस में छपने वाले रूसी आप्रवासियों के एक अख़बार में प्रकाशित हुए थे। रूस में उनकी यह डायरी 1987-88 तक नहीं छपी थी, क्योंकि उसमें क्रान्ति के प्रति हताशा और बोल्शेविकों के प्रति घृणा की भावनाएँ अभिव्यक्त की गई हैं।
’शापित दिन’ में बूनिन ने लिखा है — क्या ज़्यादातर लोग यह नहीं जानते थे कि क्रान्ति बस, एक ख़ूनी खेल है, जो कुछ समय के लिए लोगों की जगह बदल देता है और जो हमेशा इस तरह ख़त्म होता है कि जनता जो कुछ समय के लिए मालिकों की गद्दी पर बैठने का सुख उठा लेती है तो भी आख़िरकार वह आग से बचकर भी लपटों में झुलस ही जाती है।
अरसेन्यिफ़ का जीवन (1927-33)
इवान बूनिन का मानना था कि 1930 में पेरिस ने प्रकाशित हुए उनके इस उपन्यास पर ही उन्हें नोबल पुरस्कार इसलिए दिया गया था, क्योंकि उन्होंने रूसी गद्य साहित्य के विकास की परम्पराओं का उसमें कठोरता से पालन किया था।
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इस उपन्यास में उपन्यास के नायक अलिक्सेय अरसेन्यिफ़ के बचपन और किशोरावस्था का चित्रण किया गया है। अलिक्सेय लीका से प्रेम करता है, जबकि लीका के पिता उनके इस रिश्ते के विरोधी हैं। लीका अरसेन्यिफ़ से मुलाक़ात नहीं करती। अरसेन्यिफ़ उसे ढूँढ़ने की कोशिश करता है। लीका का पिता अरसेन्यिफ़ को यह नहीं बताता कि लीका कहाँ पर है। आख़िर में अरसेन्यिफ़ को यह मालूम होता है कि लीका कुछ महीने पहले ही मर चुकी है और उसने मरने से पहले यह अनुरोध किया था कि अरसेन्यिफ़ को उसकी मौत के बारे में न बताया जाए। ऐसे ही बूनिन की भी एक प्रेमिका थी — वर्वारा, जिसके साथ बूनिन बिना विवाह किए ही रहा करते थे। यह उपन्यास एक तरह से इवान बूनिन का आत्मकथात्मक उपन्यास है, जिसमें वे सब पात्र और वे जगहें वर्णित हैं, जो बूनिन की ज़िन्दगी से सीधे-सीधे जुड़ी हुई थीं।
रूसी लेखक कंस्तान्तिन पाउस्तोवस्की ने ’अरसेन्यिफ़ का जीवन’ उपन्यास को विश्व साहित्य की एक अनुपम रचना बताया है।
अन्धेरी गलियाँ (1938 - 1946)
इवान बूनिन के ’अन्धेरी गलियाँ’ नामक कहानी-संग्रह में सबसे प्रसिद्ध कहानी है — पवित्र सोमवार। इस कहानी में दो धनवान युवा पात्रों के रहस्यमय प्रेम और रात्रि-मिलन की कथा बताई गई है। ईस्टर से पहले पड़ने वाले महान् उपवास के पहले दिन — पवित्र सोमवार को प्रेमिका अपने प्रेमी से कहती है कि वह उसे छोड़कर जा रही है। और दो साल बाद वह युवक उस लड़की को मस्क्वा के एक मठ की साध्वियों के बीच देखता है।
बूनिन अपने इस कहानी-संग्रह ’अन्धेरी गलियाँ’ को अपनी सर्वश्रेष्ठ किताबों में से एक मानते थे। इन कहानियों पर अनेक फ़िल्में बन चुकी है और इनके आधार पर अनेक नाटक भी लिखे जा चुके हैं। इवान बूनिन का यह कहानी-संग्रह स्कूल के कोर्स में अनिवार्य रूप से बच्चों को पढ़ाया जाता है। इस संग्रह की पहली कहानी 1938 में न्यूयार्क में प्रकाशित हुई थी और उसका नाम था — अन्धेरी गलियाँ। इस संग्रह की बाक़ी सभी कहानियाँ इवान बूनिन ने द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान पेरिस में रहकर लिखी थीं।
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