रूसी साइबर सेना दुनिया के पाँच सर्वश्रेष्ठ साइबर बलों में से एक
सूचना सुरक्षा सलाहकार एजेंसी ज़ेकूरियोन एनालेटिक्स के हवाले से रूसी समाचारपत्र ’कमेरसान्त’ ने जानकारी दी है कि सबसे विकसित और प्रभावशाली साइबर सुरक्षा सेना रखने वाले देशों की सूची में रूस दुनिया में पाँचवे स्थान पर आता है।
ज़ेकूरियोन एनालेटिक्स के प्रमुख विश्लेषक व्लदीमिर उल्यानफ़ ने रूस-भारत संवाद को बताया — यह विश्लेषण हमने उन सूचनाओं के आधार पर प्रस्तुत किया है, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं। हमने इसके लिए दुनिया के प्रमुख देशों के रक्षा बजटों, सरकारी अधिकारियों और विशेषज्ञों की टिप्पणियों, अन्तरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा दी जाने वाली सूचनाओं और कुछ अन्य स्रोतों का इस्तेमाल किया है।
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साइबर सेनाओं की संख्या और उनको मिलने वाले वित्तीय अनुदानों के बारे में ज़ेकूरियोन एनालेटिक्स ने विशेष रूप से व्यापक जानकारियाँ उपलब्ध नहीं कराई हैं। लेकिन व्लदीमिर उल्यानफ़ ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में रूस की सरकार ने सूचना सुरक्षा पर किए जाने वाले खर्चे बढ़ा दिए हैं और अब रूस दुनिया की प्रमुख साइबर महाशक्तियों में शामिल हो गया है।
ज़ेकूरियोन एनालेटिक्स को मिली जानकारियों के अनुसार, दुनिया में अपनी साइबर सुरक्षा पर अमरीका सबसे ज़्यादा खर्च करता है। अमरीकी रक्षा मन्त्रालय पेण्टागन हर साल अपनी साइबर सेना में शामिल 9 हज़ार हैकरों पर क़रीब 7 अरब डॉलर खर्च करता है।
अमरीका के बाद चीन और ब्रिटेन का नम्बर आता है। चीन अपनी साइबर सेना पर डेढ़ अरब डॉलर और ब्रिटेन 45 करोड़ डॉलर खर्च करता है।
व्लदीमिर उल्यानफ़ ने बताया कि कुल मिलाकर दुनिया भर में रक्षा बजट का क़रीब 1 प्रतिशत अनुदान साइबर सुरक्षा के लिए खर्च किया जाता है। लेकिन उत्तरी कोरिया अपने रक्षा बजट का 20 प्रतिशत हिस्सा अपनी साइबर सुरक्षा के लिए खर्च करता है।
जैसाकि अपने निजी स्रोतों के हवाले से रूसी समाचारपत्र ’कमेरसान्त’ ने जानकारी दी है, रूसी साइबर सुरक्षा विभाग में क़रीब 1 हज़ार लोग काम करते हैं। रूस का रक्षा मन्त्रालय रूसी साइबर सुरक्षा विभाग की गतिविधियों पर हर साल क़रीब 30 करोड़ डॉलर खर्च करता है।
साइबर सुरक्षा सेना के उद्देश्य
ज़ेकूरियोन एनालेटिक्स के विशेषज्ञों के अनुसार, साइबर सेनाएँ इस तरह के काम करती हैं :
गुप्तचरी। साइबर हमले, जिनके दौरान दूसरे देशों के बुनियादी ढाँचों को नष्ट किया जाता है तथा आर्थिक नुक़सान पहुँचाया जाता है। सोशल वेबसाइटों पर और मीडिया में सूचना-युद्ध।लेकिन साइबर सुरक्षा सेना का एक मुख्य काम बाहरी साइबर हमलों को नाकाम करना है। व्लदीमिर उल्यानफ़ ने कहा — रूस की सूचना सुरक्षा की अवधारणा ही यह है कि बाहरी साइबर हमलों से रूस की सुरक्षा की जाए। रूसी साइबर सेना दूसरे देशों के साइबर संजालों पर हमले करने का काम नहीं करती है।
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वित्तीय अनुदान क्यों बढ़ाए जा रहे हैं
रूसी पत्रिका ’राष्ट्रीय सुरक्षा’ के प्रमुख सम्पादक ईगर करोतचेन्का ने बताया कि रूस ने 2010 के बाद अपनी साइबर सुरक्षा के लिए अनुदान तब बढ़ाए, जब अमरीकी और इज़रायली ख़ुफ़िया एजेंसियों ने ’स्टक्सनेट’ अभियान चलाकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर बड़े साइबर हमले किए।
ईगर करोतचेन्का ने कहा — विदेशी हैकरों ने ईरान के यूरेनियम शोधन कारख़ाने की मशीनों को ख़राब कर दिया और इसके परिणामस्वरूप ईरान का परमाणु कार्यक्रम बरसों के लिए बेहद पिछड़ गया है।
रूसी राजनीतिक शोध केन्द्र के साइबर समस्या सुरक्षा विभाग के विशेषज्ञ अलेग दिमीदफ़ का कहना है कि रूस के नेता रूस की सैन्य-तकनीकी सुरक्षा के लिए और ट्वीटर क्रान्तियों के विरुद्ध सक्रिय रूप से क़दम उठा रहे हैं।
अलेग दिमीदफ़ ने कहा — अरब क्रान्तियों ने दिखाया कि फ़ेसबुक, ट्वीटर और इसी तरह की दूसरी सोशल वेबसाइटों पर इस तरह की बहुत-सी सामग्री प्रकाशित की जाती है, जो देश की सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता के लिए खतरनाक होती है। सबसे बड़ी दिक़्क़त तो यह है कि आज तक इन प्रक्रियाओं को रोकने का कोई प्रभावशाली तरीका सामने नहीं आया है।
हाल ही में हुए साइबर हमले
विगत दिसम्बर के शुरू में ही रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी एफ़एसबी (फ़ेडरल सिक्योरिटी ब्यूरो) ने बताया था कि विदेशी ख़ुफ़िया संगठनों के साइबर विभाग रूसी बैंकों पर हमले करने की योजना बना रहे हैं। विदेशी हैकर रूस की वित्तीय साइबर व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर देना चाहते थे। लेकिन रूसी साइबर सेल के विशेषज्ञ विदेशी हैकरों के इन हमलों को नाकाम करने में सफल हुए।
दूसरी तरफ़ अमरीका ने रूस पर यह आरोप लगाया है कि रूसी हैकरों ने अमरीकी डेमोक्रेटिक पार्टी के सर्वरों में सेंध लगाकर राष्ट्रपति चुनाव में विरोधी दल के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प का समर्थन किया और उन्हें चुनाव जीतने में मदद की। अमरीकी सरकार ने इस तरह के आरोप लगाकर एफ़एसबी के कुछ अधिकारियों, रूस के प्रमुख गुप्तचर विभाग के अधिकारियों और कुछ निजी कम्पनियों के ख़िलाफ़ प्रतिबन्ध लगा दिए। अमरीकी सरकार का मानना है कि ये सब लोग अमरीकी डेमोक्रेटिक पार्टी के सर्वरों में सेंध लगाने के काम में शामिल थे।
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