दवोस आर्थिक सम्मेलन में बना रूसी मण्डप लोकप्रिय क्यों हुआ
17 से 20 जनवरी तक स्वीटजरलैण्ड के दवोस शहर में सम्पन्न अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक सम्मेलन में रूस की उपस्थिति इस साल पिछले साल के मुकाबले कहीं ज़्यादा आकर्षक व लोकप्रिय रही। हालाँकि पिछले साल के मुक़ाबले इस साल दवोस आर्थिक सम्मेलन में रूसी व्यावसायिकों ने कम संख्या में भाग लिया, लेकिन रूस के सरकारी उद्यमों और रूसी सरकार के अर्थव्यवस्था से जुड़े अधिकारियों की संख्या इस बार भी कम नहीं थी।
सम्मेलन में भाग लेने वाले रूसी प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व कर रहे थे — रूस के प्रथम उप-प्रधानमन्त्री ईगर शुवालफ़। उनके अलावा रूस की उप-प्रधानमन्त्री ओल्गा गलदेत्स, रूस के आर्थिक विकास मन्त्री मक्सीम अरेशकिन, ततारिस्तान के मुख्यमन्त्री रुस्तम मिन्निख़ानफ़, रूस के विदेश आर्थिक बैंक के प्रमुख सिर्गेय गोरकफ़, रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोश के प्रमुख किरील दिमित्रियेफ़, रूस के सबसे बड़े बैंक ’स्बेरबांक’ के प्रमुख गेरमन ग्रेफ़, रूस के विदेश व्यापार बैंक ’व्नेशतोर्गबैंक’ के प्रमुख अन्द्रेय कोस्तिन और रूसी संगठन ’रोसनानो’ के प्रमुख अनतोली चुबाइस ने भी दवोस आर्थिक सम्मेलन में भाग लिया। सम्मेलन में लगे रूसी मण्डप में उन लोगों से लगातार बातचीत की जा रही थी, जो कम्पनियाँ और निवेशक रूस में पूँजी निवेश करना चाहते हैं या रूस के साथ व्यापारिक सहयोग और साझेदारी करना चाहते हैं।
क्रीमिया भारत के साथ आर्थिक सम्बन्धों के विकास का इच्छुक
दवोस आर्थिक सम्मेलन में भारत की व्यापार और उद्योग मन्त्री निर्मला सीतारमण के नेतृत्व में भाग ले रहा भारतीय प्रतिनिधिमण्डल भी विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की पूरी-पूरी कोशिश कर रहा था और उन्हें यह बता रहा था कि भारत में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए क्या-क्या क़दम उठाए जा रहे हैं।
रूसी मण्डप में भीड़-भाड़
दवोस आर्थिक सम्मेलन में पहले ही दिन रूसी मण्डप में भारी भीड़-भाड़ देखने को मिली। ऐसा तो कभी नहीं हुआ था। दरअसल रूसी मण्डप में उस दिन ’रूस-अमरीका : चुनाव के बाद चर्चा’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। इसके अलावा ’प्रौद्योगिकीय परिवर्तन में बड़ी कम्पनियों की हिस्सेदारी और डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास’ विषय पर भी बातचीत का आयोजन किया गया था, जिसमें भाग लेने के लिए दुनिया की बड़ी-बड़ी प्रौद्योगिकी कम्पनियों के अधिकारी आए हुए थे।
रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष के प्रमुख किरील दिमित्रियेफ़ ने ’रूस-अमरीका : चुनाव के बाद चर्चा’ विषय पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कहा — अमरीका की नई सरकार और अमरीकी राजनीतिज्ञों में आशावाद की भावना दिखाई नहीं दे रही। वे जैसे किसी बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसलिए हमें ही अपनी तरफ़ से उनके साथ सहयोग की शुरूआत करनी होगी। हमें न केवल आतंकवाद और बाहरी चुनौतियों से लड़ने में उन्हें सहयोग देना होगा, बल्कि ऐसे आर्थिक पुलों का भी निर्माण करना होगा, जो व्यावसायिकों में आशा और दिलचस्पी का संचार कर सकें।
रूस के आर्थिक विकास मन्त्री ने इस दौरान रूस के अन्तरराष्ट्रीय व्यावसायिक संगठनों को एकजुट करने वाली विदेशी निवेश सलाहकार परिषद के सदस्यों से तथा अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख क्रिस्टियन लगार्ड से मुलाक़ात की। इन मुलाक़ातों के दौरान रूसी अर्थव्यवस्था के विकास की गति तेज़ करने से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई।
रूस और भारत आर्थिक सहयोग तेज़ी से बढ़ाएँगे
दवोस आर्थिक सम्मेलन में शुक्रवार को ’आधुनिक दुनिया में रूस की भूमिका’ विषय पर चर्चा की गई। हालाँकि इस विषय में चर्चा दवोस में आम तौर पर हर साल की जाती है, लेकिन इस बार यह विचार-विमर्श पहले के मुकाबले बेहद दिलचस्प था। रूस के प्रथम उप-प्रधानमन्त्री ईगर शुवालफ़ ने इस गोष्ठी में बीज-वक्तव्य दिया। अपने वक्तव्य में उन्होंने पूँजी निवेशकों को यह संकेत देने की कोशिश की कि रूस की सरकार आज जो नीतियाँ चला रही है, वे स्थाई नीतियाँ हैं और देश के बजट को सन्तुलित रखा जाएगा। रूस यह कोशिश कर रहा है कि दीर्घावधि के लिए रूसी रुबल की अस्थिरता को दूर किया जा सके। उन्होंने कहा — मेरा ख़याल था कि रूस में लोग कम दिलचस्पी दिखाएँगे, लेकिन मैं यहाँ देख रहा हूँ कि लोग रूस में अच्छी-खासी दिलचस्पी ले रहे हैं। हमने देखा है कि लोग रूस के साथ सक्रिय रूप से वास्तविक सहयोग करना चाहते हैं।
ट्रम्प के आर्थिक कदमों की प्रतीक्षा
दवोस आर्थिक सम्मेलन में आर्थिक विकास से लेकर इलैक्ट्रिक वाहनों के बाज़ार तक जिस विषय पर भी बात शुरू होती थी, आख़िरकार वह बातचीत डोनाल्ड ट्रम्प की नई सरकार की आर्थिक नीतियों पर जाकर ख़त्म हो जाती थी। सम्मेलन में इस बात पर गहरी चिन्ता व्यक्त की जा रही थी कि विदेश व्यापार में अमरीका संरक्षणवादी नियम और नीतियाँ लागू कर सकता है।
डोनाल्ड ट्रम्प पहले कई बार यह बात कह चुके हैं कि वे व्यापार सम्बन्धी शर्तों में बदलाव करके विदेशी मुद्रा से जुड़े मामलों में गड़बड़ी करने के लिए चीन को दण्ड देंगे।
विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख रोबेर्तो अज़ावेदू ने चेतावनी दी कि व्यापार-युद्ध शुरू करने जैसी बातों से ही दुनिया में आर्थिक संकट पैदा हो सकता है। उन्होंने कहा कि इससे बेरोज़गारी घटने की जगह, बेरोज़गारी में वृद्धि होगी क्योंकि एक तरफ़ा ढंग से क़ीमतें बढ़ाने की बदौलत ही व्यापार कम होने लगेगा और एक के बाद दूसरी कम्पनी ख़त्म होने लगेगी। उन्होंने कहा कि 1930 में भी ऐसा ही हुआ था, जब दो-तिहाई व्यापार ठप्प हो गया था।
लेकिन दवोस आर्थिक सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी चिन फ़िंग वैश्विकता के मुख्य वकील के रूप में सामने आए। उन्होंने पहली बार दवोस आर्थिक सम्मेलन में शिरकत की थी। उन्होंने निवेशकों से अपील की कि उन्हें अर्थव्यवस्था के उन नए से नए क्षेत्रों में निवेश करना चाहिए, जो पहले विदेशी निवेश के लिए पूरी तरह से बन्द थे। शी चिन फ़िंग ने कहा — हमें मुक्त व्यापार और मुक्त पूँजी प्रवाह का समर्थन करना चाहिए और संरक्षणवाद का पूरी तरह से विरोध करना चाहिए। संरक्षणवाद का मतलब ख़ुद को किसी ऐसे अन्धेरे कमरे में बन्द कर लेना होगा, जिसमें बारिश और ठण्डी हवाओं से तो बचाव हो सकता है, लेकिन जिसमें न रोशनी होगी और न साँस लेने के लिए ताजा हवा। इसी तरह से व्यापार युद्धों से भी किसी को कोई फ़ायदा नहीं होगा।
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