रूस और भारत के बीच सैन्य-तकनीकी सहयोग के विकास की सम्भावनाएँ
सैन्य उत्पादों के क्षेत्र में भारतीय बाज़ार में आजकल बड़े बदलाव हो रहे हैं। मुख्य तौर पर इन बदलावों की तीन प्रवृत्तियाँ सामने आ रही हैं।
पहली बात तो यह है कि भारत अब सिर्फ़ रूस से ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों से भी हथियार ख़रीदने लगा है। आज चीन को छोड़कर दुनिया के सभी बड़े हथियार उत्पादक देश भारत के हथियारों के बाज़ार में उपस्थित हैं।
दूसरी बात यह है कि भारत का बड़ी तेज़ी से आर्थिक विकास हो रहा है, इसलिए भारत की वित्तीय क्षमता भी बढ़ती जा रही है। इसी के परिणामस्वरूप अब भारत धीरे-धीरे महंगे हथियारों को ख़रीदने की कोशिश कर रहा है।
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और भारत के हथियारों के बाज़ार में तीसरी महत्वपूर्ण और नवीनतम प्रवृत्ति यह सामने आई है कि भारत ’मेक इन इण्डिया’ की नीति पर अमल कर रहा है और इस सिलसिले में वह यह कोशिश कर रहा है कि सैन्य मालों और सैन्य तकनीक का उत्पादन भारत में ही किया जाए। हालाँकि अभी तक यह कोशिश सिर्फ़ ऐलान तक ही सीमित है। कम से कम भारत ने ’मेक इन इण्डिया’ नीति की घोषणा के बाद रफ़ाल विमान ख़रीदने का जो अनुबन्ध किया है, वह अनुबन्ध तो भारत की इस नीति की पुष्टि नहीं करता है। इसी तरह भारत में भाजपा की सरकार के सत्ता में आने से पहले भारत ने अमरीका के साथ सैन्य तकनीक ख़रीदने के जो अनुबन्ध किए थे, वे भी भारत की ’मेक इन इण्डिया’ नीति के अनुकूल नहीं हैं।
उल्लेखनीय है कि पहली दो प्रवृत्तियों के विकास से भारत के हथियारों के बाज़ार में रूस की स्थिति जटिल होती जा रही है। रूसी हथियार आम तौर पर न तो महंगे होते हैं और न ही सस्ते। उनकी क़ीमतें मंझोली होती हैं। इसलिए अगर भारत अब महंगे हथियार ख़रीदना चाहता है तो यह रूसी सैन्य-उत्पादों के लिए ख़तरे की घण्टी है। हथियारों के बाज़ार में जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे रूसी हथियार निर्यातकों के सामने मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। लेकिन भारत के हथियारों के बाज़ार में दिखाई देने वाली तीसरी प्रवृत्ति — ’मेक इन इण्डिया’ की नीति से रूसी कम्पनियों के सामने भारत के साथ सहयोग की नई सम्भावनाएँ खुल गई हैं।
रूस के पास अपने सैन्य उत्पादों का भारत में उत्पादन करने का बड़ा भारी अनुभव है, जबकि दूसरे देश इस मामले में रूस से काफ़ी पिछड़े हुए हैं। वास्तव में देखा जाए तो सोवियत संघ ने पिछली सदी के सातवें दशक के शुरू में जब भारत के हथियारों के बाज़ार में क़दम रखा था, तभी से रूस भारत में ’मेक इन इण्डिया’ की नीति के अनुसार काम कर रहा है। भारत को दूसरी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों ’मिग-21’ की सप्लाई से ही रूस और भारत के बीच ’मेक इन इण्डिया’ सहयोग शुरू हो गया था और भारत रूस से लायसेंस लेकर भारत में ही इन विमानों का उत्पादन करने लगा था। बाद में भारत में नई पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का भी उत्पादन किया गया और यह सहयोग एसयू-30 एमकेआई विमानों के भारत में उत्पादन के दौर में अपने चरम पर पहुँच गया।
रूसी-भारतीय सैन्य-तकनीकी सहयोग की भावी सम्भावनाएँ
अन्य देशों की तरफ़ से भारी प्रतिस्पर्धा के बावजूद भारत के हथियार बाज़ार में रूस की स्थिति आज भी बेहद मज़बूत है। हर साल रूस भारत को क़रीब साढ़े 3-4 अरब डॉलर के हथियारों की सप्लाई करता है यानी रूस द्वारा किए जाने वाले हथियारों के कुल निर्यात का 28 प्रतिशत हिस्सा भारत को निर्यात किया जाता है।
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आने वाले सालों में रूस और भारत के बीच सैन्य-तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में निम्नलिखित परियोजनाओं पर अमल किया जा सकता है।
2019 तक भारतीय वायुसेना के लिए भारत में बनाए जा रहे एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों का उत्पादन पूरा होने के बाद सुखोई सुपर 30 के मानक स्तर तक इन विमानों का आधुनिकीकरण करने का सवाल पैदा होगा। भारत में ऐसे कुल 270 रूसी लड़ाकू विमानों का उत्पादन किया जा रहा है। इन विमानों का आधुनिकीकरण भी भारतीय कारख़ानों में ही किया जाएगा, जो ’मेक इन इण्डिया’ की भारत की नीति के अनुकूल होगा। दोनों देश मिलकर पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान का उत्पादन और उसकी मार्केटिंग (विपणन) करना चाहते हैं। इस सँयुक्त कार्यक्रम पर भी अमल किया जा रहा है। पाँचवी पीढ़ी के ये लड़ाकू विमान ही इक्कीसवीं सदी में भारतीय वायुसेना की प्रमुख ताक़त होंगे। रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन की पिछली भारत यात्रा के समय दो देशों के बीच यह सहमति हुई है कि भारत रूस से नवीनतम हवाई सुरक्षा मिसाइल प्रणाली ख़रीदेगा। इस तरह इतिहास में पहली बार भारत के पास लम्बी दूरी तक मार करने वाली हवाई सुरक्षा मिसाइल प्रणाली होगी। नौसैनिक क्षेत्र में रूस-भारत सहयोग के अन्तर्गत भारत को परियोजना 11356 के तलवार-वर्ग के युद्धपोतों की सप्लाई की जाएगी और भारतीय गोदियों में ऐसे ही युद्धपोतों का निर्माण किया जाएगा। रूस और भारत के बीच एक और अनुबन्ध हैलिकॉप्टरों के उत्पादन के बारे में हुआ है। भारत रूस से लायसेंस लेकर अपने यहाँ क़रीब 160 केए-226टी नामक हलके हैलिकॉप्टरों का उत्पादन करने जा रहा है। और इसके अलावा 7 नवम्बर 2016 को भारत की रक्षा ख़रीद परिषद ने यह फ़ैसला किया है कि भारत रूस से 464 नवीनतम टी-90एमएस टैंक ख़रीदेगा। ये टैंक दुनिया के सबसे आधुनिकतम टैंक माने जाते हैं, जिनका दुनिया में कोई सानी नहीं है।रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन की पिछले वर्ष अक्तूबर में सम्पन्न हुई भारत यात्रा के समय दो देशों के बीच क़रीब 10 अरब डॉलर के अनुबन्ध हुए थे। और इसके बाद भारत द्वारा टैंकों की ख़रीद करने का जो फ़ैसला किया गया, उनकी क़ीमत भी 2 अरब डॉलर के क़रीब है।
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सहयोग की सम्भावनाएँ
हमारी इच्छा है कि सैन्य-तकनीक क्षेत्र में रूस और भारत के बीच सहयोग इन दो दिशाओं में विकसित होना चाहिए।
पहली दिशा — सामरिक और उपसामरिक हथियारों के क्षेत्र में रूस को खुलकर अपने प्रस्ताव भारत के सामने पेश करने चाहिए। रूस को यह बताना चाहिए कि वह भारत को विशेष ऊर्जा संयंत्रों से लैस अपनी बहुउद्देशीय पनडुब्बियाँ, मध्यम दूरी के मिसाइल और अन्तरमहाद्वीपीय मिसाइल देना चाहता है। रूस चाहता है कि भारत के पास मिसाइल हमले की पूर्व चेतावनी देने वाली प्रणालियाँ और इन मिसाइलों के हमले को नाकाम करने वाली प्रणालियाँ हों।
साफ़-साफ़ कहें तो भारत को मिसाइलों की दृष्टि से और उनसे अपनी सुरक्षा की दृष्टि से पूर्ण रूप से सक्षम हो जाना चाहिए। इसके साथ-साथ भारत के पास अपनी परमाणविक पनडुब्बियाँ भी उचित संख्या में होनी चाहिए। रूस इस काम में भारत की सहायता करने को तैयार है। और इसका कारण सिर्फ़ व्यावसायिक ही नहीं है, बल्कि रूस का सैन्य-राजनैतिक नज़रिया भी इसका कारण है। मुझे लगता है कि रूस को यह अधिकार है कि वह भारत को न सिर्फ़ सामरिक हथियारों की सप्लाई बढ़ाने की बात करे, बल्कि नागरिक यात्री विमानों जैसे असैनिक उत्पादों की आपूर्ति भी करे।
दूसरी दिशा — दो देशों को अब सैन्य-तकनीक के क्रेता-विक्रेता के रूप में आपसी सहयोग से आगे औद्योगिक-तकनीकी सहयोग की दिशा में चलने का प्रयास करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि दोनों देशों को जोख़िम का बँटवारा करके सँयुक्त निर्माण परियोजनाओं को आगे बढ़ाना चाहिए। ब्रह्मोस मिसाइलों का उत्पादन और पाँचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान के निर्माण की परियोजनाएँ इस तरह के सहयोग का उदाहरण हैं। मेरे ख़याल से रूस को मध्यम दूरी के आधुनिकतम लड़ाकू विमान का निर्माण करने की भारतीय परियोजना से जुड़ जाना चाहिए।
भविष्य में जब मध्यम दूरी तक मार करने वाले चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को बदलने की बात उठेगी तो यह परियोजना रूस और भारत दोनों ही देशों के लिए बड़ी फ़ायदेमन्द होगी। कुल मिलाकर, मेरी नज़र में रूस और भारत को न सिर्फ़ हथियारों के निर्माण के क्षेत्र में आपसी सहयोग करना चाहिए, बल्कि दोनों का हथियारों का बाज़ार भी मिलकर एक ही बाज़ार के रूप में सामने आना चाहिए। दोनों देशों के राष्ट्रीय हित एक दूसरे के पूरक हैं, दोनों देशों के बीच सैन्य-तकनीकी सहयोग की एक लम्बी परम्परा है और दोनों ही देशों के व्यापार और उद्योग के सांस्कृतिक तत्व भी एक जैसे ही हैं — ये तथ्य इस बात के प्रमाण हैं कि दोनों देश सँयुक्त रूप से हथियारों का निर्माण करने की ज़िम्मेदारी भी पूरी तरह से उठा सकते हैं।
कंस्तान्तिन मकियेन्का - उपनिदेशक, रणनीति व तकनीकी विश्लेषण केन्द्र
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