जल्दी ही भारत के आकाश में उड़ेगा मिग-35 लड़ाकू विमान
भारत जल्दी-ही बड़ी संख्या में लड़ाकू विमान खरीदने जा रहा है। पश्चिमी देशों की जोड़-तोड़ करने वाली विमान निर्माता कम्पनियाँ इस निविदा को हथियाना चाहती हैं। रूसी विमान कम्पनियों के ‘संयुक्त विमान निगम’ ने हाल ही में ऐलान किया है कि ‘रूसी विमान निगम मिग’ भी अपने अधुनातन मिग-35 लड़ाकू जेट विमान के साथ इस निविदा को पाने की कोशिश करेगा।
नाटो सन्धि संगठन मिग-35 को फ़ुल्क्रम-एफ़ के नाम से पुकारता है। विगत 27 जनवरी को मस्क्वा (यानी मास्को) के पास स्थित ‘मिग’ कम्पनी के लुखोवित्सी कारखाने में मिग-35 लड़ाकू जेट विमान का औपचारिक रूप से अनावरण किया गया। इस अवसर पर लगभग 30 देशों के सैन्य अधिकारी और राजनयिक मौजूद थे। भारतीय वायुसेना, नौसेना और थलसेना के प्रतिनिधियों ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया। कार्यक्रम में उच्च तकनीकी त्रिआयामी मल्टीमीडिया प्रस्तुतिकरण के बाद दो सीटों वाले प्रशिक्षु व लड़ाकू मिग-35 जेट विमानों ने अपनी उड़ान का भव्य प्रदर्शन किया। इस उड़ान को रूस के उप-प्रधानमन्त्री दिमित्री रगोज़िन के साथ-साथ तमाम विदेशी अतिथियों ने भी देखा।
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मिग-35 जेट विमानों की भव्य प्रदर्शन उड़ान के बाद मेरे एक सवाल का जवाब देते हुए दिमित्री रगोज़िन ने कहा — बिल्कुल, प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के ‘मेक इन इण्डिया’ कार्यक्रम के अन्तर्गत ही हम भारत के सामने इस लड़ाकू जेट विमान को बेचने का प्रस्ताव रखेंगे। आगामी वसन्त काल में नई दिल्ली में होने वाले ‘सैन्य-औद्योगिक सम्मेलन’ में भी यह मुद्दा उठाया जाएगा।
हालाँकि फरवरी में बेंगलुरु में होने जा रहे ‘एयरोइण्डिया 2017’ नामक एयर शो में मिग-35 विमान का प्रदर्शन नहीं किया जाएगा क्योंकि इसका नियमित उत्पादन शुरू करने से पहले इस विमान की सभी मशीनों का और उस पर तैनात हथियारों का सघन परीक्षण किया जा रहा है। इन मिग-35 लड़ाकू जेट विमानों की पहली खेप रूसी वायुसेना को 2019 में मिलेगी। और हमें उम्मीद है कि सन 2020 के आसपास हम इस विमान का विदेशी खरीददारों को भी निर्यात करना शुरू कर देंगे।
2007 में भारत ने मध्यम दूरी तक उड़ान भरने वाले 126 बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान खरीदने के लिए जो निविदा जारी की थी, उसमें भी मिग-35 विमान ने भाग लिया था। इसके अलावा बेंगलुरु में 2007 में आयोजित ‘एयरोइण्डिया’ एयर शो में भी मिग-35 ने उड़ान भरी थी।
भारत द्वारा जारी की गई इस निविदा में रूस ने मिग-29के / केयूबी नामक नौसेना के लिए बनाए गए विमानों का ही संशोधित रूप पेश किया था। इन विमानों में झूक एई तथा एएमई राडार लगा दिए गए थे और उन्हें मिग-35 के नए नाम से पेश कर दिया गया था। लेकिन तब अमरीका की लॉकहीड मार्टिन कम्पनी द्वारा बनाए जाने वाले एफ़-16, बोइंग कम्पनी के एफ़-18 और स्वीडन के साब ग्रिपेन के साथ-साथ मिग-35 को भी भारत ने ख़रीदने से इनकार कर दिया था। आखिरकार 2011 भारत ने फ़्रांस के दासाल्त राफ़ेल की ख़रीद करने का फ़ैसला कर लिया था और यूरोफ़ाइटर 2000 टाइफून भी प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गया था।
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लेकिन राफ़ेल विमानों की ख़रीद करने से जुड़ा यह सौदा लम्बा खिंचता चला गया और आख़िर में सिर्फ़ 36 विमान खरीदने का अनुबन्ध ही हो पाया। ‘रूसी विमान निगम मिग’ इस बात को भी भारत में अपने नए लड़ाकू विमान को बेचने के लिए एक मौक़ा मानता है। रूसी विमान कम्पनी 'मिग’ को भलीभाँति यह मालूम है कि भारतीय वायुसेना को क़रीब चार सौ लड़ाकू विमानों की ज़रूरत है, इसलिए 'मिग’ कम्पनी ने अपने मिग-35 लड़ाकू विमान के विकास का काम लगातार जारी रखा।
2012 में रूसी वायुसेना के शताब्दी समारोह में इसकी तकनीक का सार्वजनिक प्रदर्शन किया गया। 2013 और 2015 में मस्क्वा में आयोजित ‘अन्तरराष्ट्रीय विमानन व अन्तरिक्ष प्रदर्शनी’ में भी इसने उड़ान भरी। और आखिरकार, 27 जनवरी 2017 को अधुनातन मिग-35 के एक तथा दो सीटों वाले प्रशिक्षु व लड़ाकू संस्करणों का सम्भावित विदेशी खरीददारों के सामने खूब धूमधाम से अनावरण किया गया।
रूस के सूत्रों के अनुसार यदि भारत और रूस के बीच अनुबन्ध हो जाता है, तो 'मिग’ कम्पनी भारत में अपना कारखाना भी लगा सकती है। भारतीय वायुसेना की ज़रूरतों को पूरा करने के बाद भारत स्थित इस कारखाने में उत्पादित मिग-35 लड़ाकू विमानों का अन्य देशों को निर्यात किया जा सकता है।
रूसी कम्पनियों को भारत में लड़ाकू विमानों का उत्पादन करने का बड़ा अनुभव है। पहले महाराष्ट्र के नासिक शहर में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के कारखाने में मिग-21, मिग-23 तथा मिग-27 लड़ाकू विमानों का उत्पादन किया जाता था। आजकल वहाँ पर सुखोई एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमानों का उत्पादन किया जा रहा है।
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मस्क्वा स्थित एक स्वतन्त्र थिंक टैंक — ‘रणनीति व प्रौद्योगिकी विश्लेषण केन्द्र’ के उपनिदेशक डॉ० कंस्तान्तिन मकीयिंका के अनुसार, 2019 में नासिक स्थित हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के कारखाने में एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों का उत्पादन पूरा हो जाएगा और फिर वहाँ पर बड़ी आसानी से मिग-35 लड़ाकू विमानों का उत्पादन शुरू किया जा सकता है।
वैसे रूस उन निजी भारतीय कम्पनियों के साथ भी विमान उत्पादन के क्षेत्र में सहयोग करने के लिए तैयार है, जिनके नाम भारत की सरकार तय करेगी। एक समय था, जब मिग-21 लड़ाकू विमान को विश्व का सर्वोत्तम सुपरसोनिक (पराध्वनिक) लड़ाकू विमान माना जाता था। अमरीका के साथ हुए युद्ध में वियतनाम की सफलता के पीछे मिग-21 लड़ाकू विमानों की निर्णायक भूमिका थी।
1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में भारत द्वारा पाकिस्तान को धूल चटाने में भी मिग-21 लड़ाकू विमानों का काफी बड़ा योगदान रहा। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश युद्ध में अमरीकियों ने पाकिस्तान की ख़ूब मदद की थी और उसे भरपूर सैन्य साजोसामान दिया था। मिग-21 लड़ाकू विमान को उसकी विशेषताओं के कारण ही बीसवीं सदी के लड़ाकू विमानों का बेताज बादशाह कहा जाता था।
मिग-35 लड़ाकू विमान भी इक्कीसवीं सदी में भारतीय वायुसेना के लिए कुछ उसी तरह की गौरवशाली भूमिका निभा सकता है क्योंकि आखिरकार कृति और कुछ नहीं, अपने सर्जक की बस छाया मात्र ही तो होती है। और यहाँ मिग-21 और मिग-35 दोनों विमानों को विकसित करने वाले विशेषज्ञ और इंजीनियर रूस के ही हैं।
भारतीय पत्रकार विनय शुक्ला पिछले चालीस साल से भी अधिक समय से रूस के बारे में लिख रहे हैं। इस लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं। उनके अन्य लेख पढ़ने के लिए यहाँ पर जाएँ।
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