साइबेरिया के जीव वैज्ञानिकों ने कृत्रिम रक्तवाहिका बनाई
रूसी वैज्ञानिकों ने सफल सामग्री के चुनाव और कोशिकाओं की मदद से मानव शरीर की कृत्रिम रक्तनली या नस बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। यह नस शरीर-तन्त्र में काम करने वाली रक्तवाहिकाओं से एकदम मिलती-जुलती है। इस कृत्रिम रक्तवाहिक को मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली भी स्वीकार करेगी, इससे सूजन नहीं होगी, रक्त के थक्के नहीं बनेंगे और रक्तवाहक नस में किसी तरह की रुकावट भी पैदा नहीं होगी।
जीवित कोशिकाएँ
अभी तक अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी आदि दुनिया के कई देशों के ऊतक इंजीनियरिंग विशेषज्ञ कृत्रिम रक्तनली बनाने की कोशिश करते रहे हैं। किसी ने भेड़ के मेमने की कोशिकाओं से सिन्थेटिक रक्तनली बनाने की कोशिश की तो किसी दूसरे ने त्रिआयामी प्रिण्टर से रक्तवाहिकाएँ बनाने का प्रयास किया।
रूस में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों के जीवन-अनुभव
नवासिबीर्स्क विश्वविद्यालय और कोशिका विज्ञान व जनन विज्ञान संस्थान के रूसी वैज्ञानिकों ने भी एक और तरीका अपनाने की पेशकश की। उनकी पेशकश यह थी कि कृत्रिम रक्त वाहिकाओं का उपयोग करने के लिए उन्हें जीवित कोशिकाओं से भर दिया जाए। उन्होंने गलने वाली पॉलिएस्टर की झिल्ली (पॉलिकैप्रोलैक्टोन) और समुद्री ’काइटोसान’ सीपी के घोंघे का इस्तेमाल करके रक्तवाहिका बनाने की तरकीब खोजी है। वैज्ञानिकों ने इस घोंघे की कोशिकाओं को मानव हृदय कोशिकाओं (एण्डोथेलियल) में डाल दिया। घोंघे की ये कोशिकाएँ मानव की उन पेशियों पर छा गईं, जो रक्त वाहिकाओं की देख-रेख करती हैं और उन्हें कार्य सक्षम बनाए रखती हैं।
मजबूत रक्तवाहिकाएँ
इस अनुसन्धान में हिस्सेदारी करने वाली नवासिबीर्स्क विश्वविद्यालय की छात्रा आन्ना स्मिरनोवा ने कहा — चुनी गई कोशिकाएँ प्रत्यारोपित रक्तवाहिकाओं को मजबूत बनाती हैं और उन्हें लम्बे समय तक काम करने के योग्य बनाती हैं। काइटोसान और पॉलिकैप्रोलैक्टोन के मिश्रण से यह फ़ायदा हुआ कि काइटोसान में यह जैविक गुण है कि वह मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को शान्त बनाए रखता है, वह शरीर की जैविक्ता के साथ घुल-मिल जाता है और रोगाणुरोधी प्रभाव उत्पन्न करता है। लेकिन अधुनातन पदार्थों के आधार पर जो रक्तवाहिका बनाई गई थी, वह काफ़ी मजबूत नहीं थी। इसलिए उसे मजबूत बनाने के लिए हमने काइटोसान को पॉलिकैप्रोलैक्टोन के साथ मिला दिया, जिससे वह काफ़ी मजबूत हो गई। ये सभी सामग्रियाँ अलग-अलग उतनी लाभदायक नहीं हैं, जितनी कि वे एक-दूसरे के साथ घुलमिल कर हो जाती हैं।
— इस तरह के कई प्रयोग करने के बाद अनुसन्धानकर्ताओं ने उन सभी सामग्रियों का वह उचित मिश्रण तैयार कर लिया, जो झिल्ली की सतह पर ऊतकों के विकास के लिए काफ़ी प्रभावशाली सिद्ध हुआ और जिसने यह दिखाया कि उसे शरीर में भरने के बाद मानव कोशिकाएँ भी काफ़ी कार्यक्षम हो जाती है। इस मिश्रण का चूहों पर इस्तेमाल करके देखा गया और उनकी महाधमनी में उसे भर दिया गया। इस प्रयोग ने दिखाया कि कोशिकाओं से भरी ये रक्तवाहिकाएँ काफ़ी मजबूत हैं और रक्त के उतार-चढ़ाव को पूरी सुदृढ़ता के साथ झेल सकती हैं।
आन्ना स्मिरनोवा ने कहा — चूहों की अल्ट्रासाउण्ड जाँच और चुम्बकीय टोमोग्राफ़ी से इस बात की पुष्टि हो गई कि प्रत्यारोपण के बाद प्रयोग के दौरान पूरे समय में चूहों की महाधमनी काम करती रही और प्रत्यारोपित रक्तवाहिकाओं में ख़ून आसानी के साथ बहता रहा।
प्रयोग के दौरान किए गए ऊतकीय विश्लेषण ने दिखाया कि दो हफ़्तों के बाद भी और 24 हफ़्तों के बाद भी ऊतक इंजीनियरिंग से बनाई गई कृत्रिम रक्तवाहिकाएँ ठीक से काम करती रहीं। उन्होंने आवश्यक कार्यवाहक कोशिकाओं की परत तैयार कर ली थी और आसपास फैले ऊतकों के साथ मिलकर एकीकृत हो गई थीं। जीव वैज्ञानिक अपने इस अनुसन्धान को अभी आगे जारी रखेंगे।
रूस ने आकाशगंगाओं की सबसे बड़ी सूची बनाई