सैन्य रोबोट ’उरान-9’ के आख़िरी परीक्षण की विडियो-फ़िल्म
रूसी रक्षा उद्योग अपने पहले सैन्य-रोबोट ’उरान-9’ को हथियारों के विश्व-बाज़ार में उतारने की तैयारियाँ कर रहा है। टैंक की तरह के चेनदार पहियों पर चलने वाले इस रोबोट को रिमोट से उसी तरह नियन्त्रित किया जा सकता है, जिस तरह से (चालक रहित विमानों या ड्रोनों को आकाश में नियन्त्रित किया जाता है। यह रोबोट ज़मीन पर चलेगा और थलसेना की सहायता करेगा।
थलसेना ’उरान-9’ नामक इस रोबोट का इस्तेमाल शत्रु सेना पर गोलाबारी करने, टोह लेने और सैन्य-ठिकानों की सुरक्षा करने के लिए कर सकती है। यह रोबोट ’अताका’ और ’इग्ला’ जैसे रॉकेटों से लैस है, जिनकी बदौलत वह तरह-तरह के काम पूरे कर सकता है। ’उराल-9’ नामक यह रोबोट नीची उड़ान भरने वाले शत्रु के विमानों को नष्ट कर सकता है, शत्रु की हलकी बख़्तरबन्द गाड़ियों को नेस्तानाबूद कर सकता है और दुश्मन के सुरक्षा-कवच में सेंध लगा सकता है।
सैन्य रोबोटों के निर्माण की दिशा में इस रोबोट को अभी सिर्फ़ शुरूआत ही माना जा सकता है। रूसी डिजाइनरों और सारी दुनिया के हथियार-निर्माताओं को सभी तरह के भारी हथियारों में इस तकनीक का व्यापक इस्तेमाल शुरू करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों को हल करना होगा।
कौनसी चुनौतियों का समाधान ज़रूरी है
समाचारपत्र इज़्वेस्तिया के सैन्य-विश्लेषक दिमित्री सफ़ोनफ़ ने रूस-भारत संवाद को बताया — सभी रोबोट प्रणालियों की प्रमुख समस्या यह है कि उन्हें दूर बैठकर रिमोट से नियन्त्रित किया जाता है। लड़ाई के मैदान में ये रोबोट ख़ुद कोई भी फ़ैसला नहीं कर सकते हैं। अगर रोबोट पर हमला होगा तो उसपर बम गिरने के बाद उसका सम्पर्क उस उपग्रह से टूट जाएगा, जिसके माध्यम से उसे नियन्त्रित किया जा रहा था।
उन्होंने बताया — रोबोट हर तरह के इलाके में काम कर सकेगा, जंगलों में, पहाड़ों पर या घनी आबादी वाले शहरी इलाकों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। इस रोबोट का परीक्षण करते हुए इस बात का भी ख़याल रखा गया था कि वह दुश्मन के रेडियो इलैक्ट्रोनिक हमलों के बावजूद अपना काम करता रहे क्योंकि दुश्मन रेडियो-इलैक्ट्रोनिक हमले करके रोबोट को युद्ध के मैदान में ही नाकाम कर सकता है।
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‘जन्मभूमि के शस्त्रागार’ नामक रूसी पत्रिका के प्रमुख सम्पादक वीक्तर मुरख़ोवस्की ने कहा — जैसाकि मालूम है रूस सीरिया में अपने सभी नवीनतम हथियारों का इस्तेमाल करके देख रहा है। यह भी कोई रहस्य की बात नहीं है कि आतंकवादी गिरोह ’इस्लामी राज्य’ के साथ होने वाली लड़ाइयों में कुछ हथियारों का इस्तेमाल करके देखने के बाद जब उन हथियारों में कोई नुक़्स दिखाई दिया तो उन्हें उस दोष को सुधारने के लिए वापिस हथियार-निर्माताओं को सौंप दिया गया। हो सकता है कि जल्दी ही ’उरान-9’ रोबोट भी सीरिया में लड़ता हुआ दिखाई दे। वहाँ युद्ध के मैदान में उसकी सभी ख़ासियतें और संभावनाएँ सामने आ जाएँगी। यह भी जाँच हो जाएगी कि दुश्मन के रेडियो इलैक्ट्रोनिक हमलों के सामने यह रोबोट ठहर पाएगा या नहीं।
इसके साथ-साथ विशेषज्ञों ने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि ये रोबोट टैंकों और बख़्तरबन्द गाड़ियों जितने शक्तिशाली नहीं हैं। इन रोबोटों का इस्तेमाल करके कोई लड़ाई नहीं जीती जा सकती है या वे युद्ध की दिशा नहीं बदल सकते हैं। आज ये रोबोट ख़ुफ़िया एजेंसियों के कर्मियों का जीवन बचाने में सहायता करते हैं। लेकिन किसी भी युद्ध में या सैन्य कार्रवाई में उसका अन्तिम परिणाम सैनिक ही तय करते हैं।
दिमित्री सफ़ोनफ़ ने कहा — यहाँ यह सिद्धान्त लागू होगा कि रोबोट में जितनी ज़्यादा कमियाँ सामने आएँगी, उतना अच्छा रहेगा। युद्ध के मैदान में रोबोट के इन प्रारम्भिक मॉडलों में जितनी ज़्यादा कमज़ोरियाँ सामने आएँगी, रोबोट को उतना बेहतर बनाना संभव होगा। और रोबोट जितना बेहतर होगा, उतने ज़्यादा सैनिकों का जीवन बचाया जा सकेगा।
’उरान-9’ रोबोट का मुख्य मॉडल 30 मिलीमीटर की स्वाचालित तोप 2ए72 और 7.62 मिलीमीटर की मशीनगन से लैस है। इस रोबोट में लगे हथियार एक मिनट में 350 से 400 राउण्ड तक गोलियाँ छोड़ सकते हैं। इसके अलावा इस रोबोट के हथियारों में टैंकरोधी रॉकेट 9एस120 यानी ’अताका’ और वायु सुरक्षा मिसाइल 9के33 यानी ’इग्ला’ भी शामिल है। ये दोनों हथियार पाँच किलोमीटर की दूरी तक शत्रु पर वार कर सकते हैं। रोबोट के डिजाइनरों का कहना है कि इसके प्लेटफ़ार्म (मूलाधार) पर विभिन्न प्रकार के हथियार तैनात किए जा सकते हैं।
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