इलैक्ट्रोनिक गजेटों के हानिकारक प्रभाव से लोगों को बचाने वाला एक नई तरह का कपड़ा
रूसी वैज्ञानिकों और भूतपूर्व सैन्य विशेषज्ञों द्वारा बनाया गया यह जैवध्रुवीय कपड़ा इलैक्ट्रोनिक गजेटों के हानिकारक प्रभाव से लोगों को बचाएगा। यह कपड़ा एक ढाल के रूप में काम करता है और एक बड़ी फ़्रीक्वेंसी रेंज पर विद्युत चुम्बकीय विकिरण को सोख लेता है। आजकल अमरीका, यूनान और पूर्वी यूरोप के देशों को इस कपड़े का निर्यात किया जा रहा है।
’स्क्रीनटैक्स’ नामक इस कपड़े का आविष्कार करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि इस नए कपड़े का इस्तेमाल रेडियो उद्योग, सिविल इंजीनियरिंग, चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में किया जा सकता है। यह कपड़ा उस पोलिमेर की कई तहों को मिलाकर बनाया गया है, जो राडारों से सैन्य उपकरणों को छुपा लेते हैं।
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स्क्रीनटैक्स के आविष्कारक, वैज्ञानिक डॉक्टर अलिक्सान्दर तितमीर ने बताया — पिछली सदी के आठवें दशक से ही हम विद्युत चुम्बकीय विकिरण पर काम कर रहे हैं। अन्तरिक्ष यान ’सोयूज को बनाते हुए, बहुपयोगी अन्तरिक्ष यान बुरान तथा अन्तरिक्ष उपग्रह प्रणाली का निर्माण करते हुए हमने यह शोध भी करके देखा कि विद्युत चुम्बकीय विकिरण से ख़ुद को कैसे बचाया जाए। उसी समय यह कपड़ा बनाने का विचार मन में आया था।
न्यूरो स्पेशलिस्टों, सर्जनों और रिफ़्लेक्सोलॉजिस्टों ने भी इस जैवध्रुवीय कपड़े से बने कम्बलों और कैप्सूलों में दिलचस्पी दिखाई है।
इलैट्रोनिक उपकरण हानिकारक होते हैं?
स्टॉकहोम के करोलिन्स्का संस्थान के वैज्ञानिकों ने कहा — विभिन्न गजेटों और इलैक्ट्रोनिक उपकरणों का मानव-शरीर पर क्या कुप्रभाव पड़ता है, इसका अभी तक पूरी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है। लेकिन बहुत से शोधों से यह बात सामने आई है कि इलैक्ट्रोनिक गजेट मनुष्य को चिड़चिड़ा बनाते हैं, उसकी स्मृति और ध्यान को ख़राब करते हैं और मनुष्य लगातार थकान महसूस करने लगता है। उदाहरण के लिए, दस साल तक सेल फ़ोन या मोबाइल फ़ोन के लगातार इस्तेमाल से कान में फोड़ा हो सकता है। रूस के विद्युत चुम्बकीय सुरक्षा केन्द्र के निदेशक, जीव वैज्ञानिक अलेग ग्रिगोर्यिफ़ ने कहा — गजेटों का हम जितना ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं, उनमें लगे मानव-शरीर की सुरक्षा करने वाले संसाधन उतनी जल्दी घिस जाते हैं। हमारे नर्वस सिस्टम पर, हमारे इम्यून सिस्टम पर और हमारी प्रजनन क्षमता पर इन गजेटों से निकलने वाले विकिरण का भारी कुप्रभाव पड़ता है।
मानव शरीर पर जैवध्रुवीय कपड़े के प्रभाव का अध्ययन कैसे किया गया?
’इनसान मेड’ क्लीनिक के प्रमुख डॉक्टर वीक्तर विन्यूकफ़ ने कहा — नए कपड़े का इस्तेमाल करने के बाद शरीर की अन्तःस्रावी प्रणाली में सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दिए। यह अन्तःस्रावी प्रणाली मानव शरीर के अन्य अंगों और उनके कार्यों को भी प्रभावित करती है। इस कपड़े का इस्तेमाल करने के बाद रोगियों के हार्मोन सन्तुलित हो गए, उनकी थायराइड ग्रन्थि में गाँठें कम हो गईं, उनका उच्चरक्तचाप गिर गया और वे बेहतर नींद लेने लगे। इसके अलावा, रोगियों के सिर और जोड़ों में होने वाला दर्द भी कम हो गया और उनका इम्यून सिस्टम पहले से बेहतर हो गया।
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मस्क्वा (मास्को) के कुछ क्लीनिकों के विशेषज्ञों ने यह स्वीकार किया कि रोगी के इलाज में इस जैवध्रुवीय कपड़े का इस्तेमाल करने के बाद उसका नर्वस सिस्टम बेहतर हुआ है। इस तरह स्क्रीनटैक्स नामक इस कपड़े का रोगियों के इलाज में काफ़ी असर पड़ा।
यह जैवध्रुवीय कपड़ा मानवशरीर के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है। किसी भी बीमारी के किसी दूसरे इलाज पर या दूसरी दवाइयों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। इस कपड़े का इस्तेमाल कितनी भी देर तक किया जा सकता है। इसका कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। कपड़ा हाइड्रोकार्बन से बना हुआ है। इस कपड़े के सम्पर्क में आकर शरीर से उसका ख़ुद का ताप विकिरण होने लगता है। यह ताप विकिरण उन फ़्रीक्वेंसियों पर होता है, जिन पर घायल शरीर या चोटिल शरीर ठीक हो रहा होता है। इसलिए शरीर के क्षतिग्रस्त ऊतक इस जैवध्रुवीय कपड़े के कम्बल के नीचे ज़्यादा तेज़ी से ठीक होने लगते हैं।
अलिक्सान्दर तितमीर ने कहा — लेकिन यह कपड़ा सभी रोगों के लिए संजीवनी बूटी नहीं है। यहाँ तक कि इस कपड़े का इस्तेमाल करके हर तरह के रोग से बचना भी सम्भव नहीं है। कीटाणुओं और विषाणुओं से मानव-शरीर को यह कपड़ा नहीं बचा सकता है। मस्तिष्क पर पड़ने वाले बाहरी प्रभावों से भी जैवध्रुवीय कपड़ा मनुष्य को नहीं बचा सकता। इस कपड़े की मुख्य विशेषता यह है कि यह मानव शरीर के स्वनियमन और स्वचिकित्सा के तन्त्र को फिर से नियमित कर देता है।
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