पूतिन का मध्य एशियाई देशों का दौरा कैसा रहा?
विगत 26 से 28 फरवरी तक रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन ने कज़ाख़स्तान, ताजिकिस्तान और किरगिज़िस्तान की यात्रा की। हालाँकि उनकी यह यात्रा पूरी तरह से पूर्वनियोजित थी, किन्तु इसके बावजूद इस यात्रा में लगभग कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया। फिर भी विशेषज्ञों ने उनकी इस यात्रा से अनेक महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाल ही लिए।
व्लदीमिर पूतिन सबसे पहले कज़ाख़स्तान पहुँचे। कज़ाख़स्तान मध्य एशिया का सबसे समृद्ध देश है। मध्य एशिया के देशों में कज़ाख़स्तान यूरेशियाई एकीकरण के लिए काम कर रहे ‘यूरेशियाई आर्थिक संघ‘ का सबसे प्रबल समर्थक है। कज़ाख़स्तान रूस का रणनीतिक विदेश नीति सहयोगी भी है। सीरियाई शान्ति वार्ता का आयोजन भी कज़ाख़स्तान की राजधानी अस्ताना में ही किया जाता है।
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कज़ाख़स्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायफ़ के साथ व्लदीमिर पूतिन की दोस्ती है, इसलिए दोनों नेताओं ने एक-साथ स्कीइंग करते हुए राजनीतिक बातचीत की। विशेषज्ञों के अनुसार, रूस यह मानता है कि कज़ाख़स्तान की वजह से ही मध्य एशियाई देश यूरेशियाई आर्थिक संघ से जुड़े हुए हैं और यूरेशियाई आर्थिक संघ के अधिक संकटग्रस्त देशों यानी ताजिकिस्तान व किरगिज़िस्तान की यात्रा पर जाने से पहले व्लदीमिर पूतिन ने कजाख़ राष्ट्रपति से भी उनके बारे में जरूर राय-मशविरा किया होगा।
खाद्य सामग्री और प्रवासी
ताजिकिस्तान यूरेशियाई आर्थिक संघ की सदस्यता का उम्मीदवार है। इस बारे में वार्ता पिछले कई साल से चल रही है। आज स्थिति यह है कि देश की वर्तमान समस्याओं का तुरन्त समाधान निकालने की जरूरत है। व्लदीमिर पूतिन की दुशाम्बे यात्रा के दौरान रूस और ताजिकिस्तान के बीच अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। इनमें परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण उपयोग के क्षेत्र में सहयोग के बारे में हुआ समझौता सबसे महत्वपूर्ण है, जो दो परमाणु अनुसंधान रिएक्टरों को फिर से शुरू करने से सम्बन्धित है।
रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन और ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति एमोमली रहमान। स्रोत : Reuters
इसके अलावा रूस ने ताजिकिस्तान में चल रहे रूसी स्कूलों के विकास में गहरी दिलचस्पी दिखाई। दो देशों के बीच 20 नए वैज्ञानिक शिक्षा केन्द्रों का निर्माण करने के बारे में भी एक समझौता हुआ है। रूस के प्रथम उप प्रधानमन्त्री ईगर शुवालफ़ ने बताया — इन विद्यालयों के निर्माण का पूरा खर्च रूसी सरकार उठाएगी, जबकि ताजिकिस्तान उन्हें अपने खर्च पर संचालित करेगा।
इनके कारण न केवल भविष्य में रूस आने वाले ताजिकिस्तान के प्रवासी श्रमिकों की शिक्षा का स्तर बेहतर रहेगा और उन्हें रूसी भाषा की बेहतर जानकारी रहेगी, बल्कि ताजिकिस्तान के भीतर रूस का सांस्कृतिक प्रभाव भी बढ़ेगा। रूस की सरकार इस बात को लेकर चिन्तित है कि सोवियत संघ के अवसान के बाद उसका सांस्कृतिक प्रभाव लगातार क्षीण होता जा रहा है। जिन देशों में 'रूसी वैचारिक अवधारणा' को यूरो-अटलाण्टिकवाद या इस्लामी विस्तारवाद से प्रबल चुनौती मिल रही है, वहाँ पर यह बात विशेष तौर पर लागू होती है। यूरो अटलाण्टिकवाद का मतलब है — यूरोप और अमरीका व कनाडा के बीच राजनैतिक, आर्थिक और रक्षा से जुड़े मुद्दों पर व्यापक पारस्परिक सहयोग ताकि पश्चिमी मूल्यों की सुरक्षा के लिए उन्हें एकजुट किया जा सके।
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रूस ताजिकिस्तान को सांस्कृतिक सहायता के साथ-साथ आर्थिक सहायता देने के लिए भी तैयार है ताकि ताजिकिस्तान की सरकारी व्यवस्था और ज़्यादा कमज़ोर न हो और ताजिकिस्तान चीन के आर्थिक शिकंजे में न फँस जाए। 2015 में ताजिकिस्तान में चीन का प्रत्यक्ष निवेश कुल विदेशी निवेश का 81.2 प्रतिशत रहा। ऐसा लग रहा है कि भविष्य में यह आँकड़ा अभी और ऊपर जाएगा।
व्लदीमिर पूतिन ने वादा किया कि वे रूस में ताजिक फलों व सब्ज़ियों की बिक्री के लिए अनुकूल वातावरण बनाएँगे और रूस में रह रहे ताजिकिस्तान के कुछ प्रवासी श्रमिकों को रूस के नियमों का उल्लंघन करने के आरोप से बरी करके उन्हें क्षमा कर देंगे। रूस में रह रहे ताजिक प्रवासी हर साल 2 अरब अमरीकी डालर अपने देश भेजते हैं, जो ताजिकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद का एक तिहाई हिस्सा है।
दोनों देशों के नेताओं ने ताजिकिस्तान की सुरक्षा, विशेष रूप से दक्षिणी क्षेत्रों की सुरक्षा के मुद्दे पर भी वार्ता की। व्लदीमिर पूतिन ने कहा — अफ़ग़ानिस्तान की जटिल स्थिति को लेकर हम बहुत चिन्तित हैं।
संकटग्रस्त किरगिज़िस्तान
व्लदीमिर पूतिन की इस यात्रा का अन्तिम पड़ाव किरगिज़िस्तान था। पूतिन की बिश्केक यात्रा का दोनों देशों के साझा भविष्य को लेकर दोनों राष्ट्रपतियों की सँयुक्त घोषणा और दोनों सरकारों के बीच दो दस्तावेज़ो पर हस्ताक्षर करने के साथ ही औपचारिक रूप से समापन हो गया। इनमें से पहला दस्तावेज़ संक्रामक रोगों से लड़ने से सम्बन्धित है, तो वहीं दूसरे दस्तावेज़ का सम्बन्ध यूरेशियाई आर्थिक संघ का सदस्य बनने की प्रक्रिया में किरगिज़िस्तान की सहायता करने से है।
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लेकिन वास्तव में व्लदीमिर पूतिन की बिश्केक यात्रा का उद्देश्य इससे इतर दो महत्वपूर्ण मुद्दों को सुलझाना था। पहला मुद्दा था — किरगिज़िस्तान के यूरेशियाई आर्थिक संघ की सदस्यता लेने के परिणामों पर वार्ता करना। उल्लेखनीय है कि किरगिज़िस्तान अगस्त 2015 में यूरेशियाई आर्थिक संघ का सदस्य बन गया था। किरगिज़िस्तान की अर्थव्यवस्था को यूरेशियाई आर्थिक संघ का सदस्य बनने से अभी तक काफी लाभ हुआ है, किन्तु किरगिज़िस्तान की सरकार में बैठे कुछ प्रभावशाली लोग यूरेशियाई आर्थिक संघ की सदस्यता से असन्तुष्ट दिखाई दे रहे हैं। और इसका कारण सिर्फ़ यही नहीं है कि चीन के साथ अवैध व्यापार में कमी आने से उनके निजी आमदनी काफ़ी घट गई है। कुछ विशेषज्ञों की राय में इसका कारण यह भी है कि किरगीज़ अधिकारी वास्तव में चोरी-चकारी के इस धन की ज़िम्मेदारी लेने से बचना चाहते हैं।
रूस के राष्ट्रपति व्लदीमिर पूतिन और किरगिज़िस्तान के राष्ट्रपति अल्माज़बेक अताम्बायफ़। स्रोत : Reuters
यूरेशियाई विश्लेषण क्लब के प्रमुख निकीता मिन्दकविच ने कहा — किरगिज़िस्तान की सरकार को अपनी विधिक समस्याओं के निपटारे के लिए यूरेशियाई आर्थिक संघ की ओर से दो साल का जो समय दिया गया था, उसने उसका सदुपयोग नहीं किया। उदाहरण के लिए, किरगिज़िस्तान की सरकार ने प्रमाणित कृषि प्रयोगशालाओं का नेटवर्क खड़ा करने का काम शुरू नहीं किया, जबकि इससे किरगीज़ कृषि उपज को यूरेशियाई बाजार में प्रवेश करने में आसानी होती। रूस और यूरेशियाई आर्थिक संघ ने इस प्रक्रिया के लिए किरगिज़िस्तान को धन दिया था, लेकिन उन्होंने अभी तक इस कार्य को पूरा नहीं किया है।
अब किरगिज़िस्तान रूस से इस काम के लिए और धनराशि पाने का प्रयास कर रहा है। ऐसा लग रहा है कि व्लदीमिर पूतिन अतिरिक्त धनराशि देने के लिए मान भी गए हैं। किरगिज़िस्तान के राष्ट्रपति अल्माज़बेक अताम्बायफ़ ने कहा — बड़े भाई रूस की सहायता से हम यूरेशियाई आर्थिक संघ की पूर्ण सदस्यता से जुड़ी बाकी समस्याओं को इस वर्ष के अन्त तक हल कर लेंगे। उस समय तक इससे जुड़े छोटे से छोटे हर अवरोध को दूर कर लिया जाएगा।
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पूतिन की यात्रा का दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा था — किरगिज़िस्तान में सत्ता हस्तान्तरण। इस वर्ष के अन्त तक किरगिज़िस्तान में राष्ट्रपति चुनाव होंगे। निकीता मिन्दकविच ने बताया — वर्तमान राष्ट्रपति अल्माज़बेक अताम्बायफ़ इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने पहले ही कह दिया है कि चुनाव के बाद किरगिज़िस्तान की पूरी सरकार बदल सकती है; यानी उनके साथ उनकी पूरी मण्डली भी अपने-अपने पद छोड़ सकती है।
रूस को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पश्चिमी देशों की संस्थाएँ किरगिज़िस्तान के राष्ट्रपति चुनाव में एक पश्चिम समर्थक साझा प्रत्याशी खड़ा करने की फिराक में हैं। पश्चिमी देशों के दृष्टिकोण से देखें तो किरगिज़िस्तान केवल यूरेशियाई एकीकरण की प्रक्रिया को ठिकाने लगाने के लिए ही नहीं, बल्कि शायद चीन पर दबाव बनाने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। लगता है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भी यही इच्छा है।
इस कारण से रूस के लिए यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि किरगिज़िस्तान में राष्ट्रपति चुनाव निर्धारित तरीके से और शान्तिपूर्वक सम्पन्न हों। किरगिज़िस्तान के लोगों को भली-भाँति यह बात मालूम है कि व्लदीमिर पूतिन किरगिज़िस्तान के राष्ट्रपति से अरबी घोड़ा लेने के लिए नहीं, बल्कि किरगिज़िस्तान के राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशियों की समीक्षा करने के लिए आए थे।
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