आधुनिकीकृत रूसी विमानवाहक युद्धपोत पर कैसे हथियार तैनात किए जाएँगे
विमानवाहक युद्धपोत ’एडमिरल कुज़्नित्सोफ़’ का आधुनिकीकरण करते हुए उसपर तैनात ’ग्रेनाइट’ नामक वह मिसाइल प्रणाली भी बदल दी जाएगी, जो आज न सिर्फ़ उपयोग की दृष्टि से पुरानी पड़ गई है, बल्कि भौतिक रूप से भी बेहद पुरानी दिखाई देने लगी है। ’ग्रेनाइट’ मिसाइल प्रणाली की जगह अब उस पर 3सी14 नामक वह सर्वोपयोगी मिसाइल लाँचर तोप लगाई जाएगी, जिससे न केवल ’कैलीबर-एनके’ क्रूज मिसाइल छोड़े जा सकेंगे, बल्कि जिसका इस्तेमाल ’ओनिक्स’ नामक पोतनाशक क्रूज मिसाइलों या ’ज़िरकोन’ नामक भावी हाइपरसोनिक मिसाइलों के प्रक्षेपण के लिए भी किया जा सकेगा। इसके अलावा विमानवाहक युद्धपोत ’एडमिरल कुज़्नित्सोफ़’ की मरम्मत के दौरान उसके सभी इलैक्ट्रोनिक उपकरणों को और इंजन को भी पूरी तरह से खोलकर उन्हें फिर से जोड़ा और लगाया जाएगा।
समाचार समिति तास ने अपने सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर बताया है — इसके साथ-साथ विमानवाहक युद्धपोत पर बनी हवाई उड़न-पट्टी या रनवे की भी मरम्मत की जाएगी ताकि लड़ाकू विमानों की उड़ान और उतराई के दौरान उनकी पूर्ण सुरक्षा की गारण्टी की जा सके।
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विमानवाहक युद्धपोत ’एडमिरल कुज़्नित्सोफ़’ पर पहले की तरह ही उसके आधुनिकीकरण के बाद भी मिग-29के/केयूबी और एसयू-33 लड़ाकू विमान ही तैनात किए जाएँगे।
पिछले साल के आख़िर में सीरिया में सैन्य कार्रवाई करके वापिस लौटते हुए विमानवाहक युद्धपोत ’एडमिरल कुज़्नित्सोफ़’ पर तैनात दो लड़ाकू विमान उतरते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे। दोनों ही बार विमानों की सुरक्षा करने वाली वे पट्टियाँ टूट गई थीं, जिनके सहारे पोत पर विमानों को उतराई के बाद रोका जाता है।
’एडमिरल कुज़्नित्सोफ़’ की प्रमुख समस्या
विशेषज्ञों का कहना है कि विमानवाहक युद्धपोत ’एडमिरल कुज़्नित्सोफ़’ की प्रमुख समस्या यह है कि उसके इंजन पुराने पड़ चुके हैं।
’जन्मभूमि के शस्त्रागार’ नामक रूसी पत्रिका के प्रमुख सम्पादक वीक्तर मुरख़ोव्स्की ने रूस-भारत संवाद से बात करते हुए कहा — युद्धपोत की ख़राबियों की जाँच करते हुए क्या-क्या ख़राबियाँ सामने आएँगी, यह तो सिर्फ़ ख़ुदा ही बता सकता है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि उसके इंजन का क्या किया जाए? क्या उसकी मरम्मत कर दी जाए ताकि वह और कुछ साल खींच ले या फिर इस पुराने इंजन की जगह नया आधुनिक इंजन लगा दिया जाए। ऐसी हालत में युद्धपोत में बहुत से बदलाव करने होंगे। उन्होंने कहा — अगर पुराना इंजन बदलकर नया इंजन लगाने का फ़ैसला किया जाएगा तो यह युद्धपोत कई साल के लिए बेकार हो जाएगा और इसे मरम्मत के लिए गोदी पर ही खड़े रहना होगा। देश के बजट पर भी उसका भारी बोझ पड़ेगा। लेकिन सबसे बड़ी दिक़्क़त तो यह है कि हम अभी ’श्तोर्म’ क़िस्म का नया युद्धपोत बनाने की स्थिति में भी नहीं हैं।
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वीक्तर मुरख़ोव्स्की ने कहा — नए ’श्तोर्म’ विमानवाहक युद्धपोत का निर्माण ’कुज़्नित्सोफ़’ की मरम्मत के मुक़ाबले दस गुना महँगा पड़ेगा। अभी इतना पैसा देश के बजट से निकालना सम्भव नहीं है। वैसे भी ’श्तोर्म’ की अभी हमें कोई ख़ास ज़रूरत भी नहीं है।
इसके साथ-साथ विशेषज्ञों का कहना है कि ’कुज़्नित्सोफ़’ में 3सी14 नामक वह सर्वोपयोगी मिसाइल लाँचर तोप लगाना उचित होगा, जिससे न केवल ’कैलीबर’ क्रूज मिसाइल छोड़े जा सकेंगे, बल्कि जिसका इस्तेमाल ’ओनिक्स’ नामक पोतनाशक क्रूज मिसाइलों या ’ज़िरकोन’ नामक भावी हाइपरसोनिक मिसाइलों के प्रक्षेपण के लिए भी किया जा सकेगा।
तास समाचार समिति के सैन्य विश्लेषक वीक्तर लितोफ़किन ने कहा — रूस के पास ऐसे युद्धपोतों की संख्या भी बहुत कम है, जो किसी विमानवाहक युद्धपोत के साथ-साथ चल सकें और उसकी भरपूर सुरक्षा कर सकें। इसीलिए यह फ़ैसला किया गया है कि विमानवाहक युद्धपोत पर ही हमलावर मिसाइल तैनात कर दिए जाएँ।
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