वे 12 रूसी शब्द, जिन्हें सारी दुनिया जानती है
वोद्का
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वोद्का परम्परागत रूसी मादक पेय है, जिसकी खोज पन्द्रहवीं सदी में तब की गई थी, जब रूसी लोग रोटी से शराब बनाया करते थे। फिर उन्नीसवीं सदी में वोद्का के उत्पादन का वैज्ञानिक तरीका खोज निकाला गया। महान् रूसी वैज्ञानिक दिमित्री मिन्दिलेयिफ़ ने रूसी वोद्का के उत्पादन का वैज्ञानिक तरीका पेश करते हुए यह भी बताया कि जब वोद्का में 40 प्रतिशत अल्कोहल होता है, तभी वह एकदम ठीक वोद्का होती है।
मत्र्योश्का
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लकड़ी की उस मोटी-सी रूसी गुड़िया को मत्र्योश्का कहा जाता है, जिसमें ’माँ-बेटियाँ’ एक साथ एक-दूसरे के भीतर रहती हैं। हर रूसी मत्र्योश्का के पेट के भीतर उससे छोटी मत्र्योश्का होती है। मत्र्योश्का शब्द रूसी नाम मत्र्योना से बना है। जिस लड़की का नाम रूस में मत्र्योना होता है, उसे लोग प्यार से मत्र्योश्का पुकारते हैं। रूसी गुड़िया मत्र्योश्का जापानी गुड़िया की नकल है। उन्नीसवीं सदी में रूस में ’मत्र्योश्का’ गुड़िया बननी शुरू हुई थी। आम तौर पर एक मत्र्योश्का गुड़िया के भीतर तीन से लेकर चौबीस गुड़ियाएँ तक होती हैं।
दाचा
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रूस के शहरों में रहने वाले लोग गर्मियों में सप्ताहन्त में शहरी ऊब और थकान मिटाने के लिए शहर के बाहर जंगल में बने घर में रहने के लिए चले जाते हैं और वहाँ अपनी थकान मिटाते हैं। दाचा शब्द रूसी क्रियाशब्द ’दात’ से बना है, जिसका मतलब होता है — देना। पहले सोवियत सरकार अपने अफ़सरों और अधिकारियों को शहर के बाहर जंगल में आराम करने के लिए घर दिया करती थी। बस, वहीं से यह शब्द आया यानी सरकार द्वारा देय सुविधा। बाद में पिछली सदी के पाँचवें-छठे दशक में आम जनता भी शहर के बाहर अपने ऐसे ही घर बनवाने लगी। हिन्दी में हम इसे ’फ़ार्महाउस’ कह सकते हैं। आज सरकार ऐसे दाचा किसी को नहीं देती। लेकिन लोग ख़ुद ही ऐसे दाचा बनवा लेते हैं या ख़रीद लेते हैं और अपनी गर्मियाँ इन घरों में बिताते हैं।
कलख़ोज़
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सामूहिक फ़ार्म शब्द को रूसी में ’कलिक्तीवनए ख़ज़्याइस्त्वा’ कहते हैं। इन्हीं ’कलिक्तीवनए ख़ज़्याइस्त्वा’ शब्दों से संक्षेप में ’कलख़ोज़’ शब्द का जन्म हुआ। किसानों की सहकारी खेती को ’कलिक्तीवनए ख़ज़्याइस्त्वा’ कहा जाता था, जिसमें किसान मिलकर श्रम करते थे और श्रम के सारे साधनों पर सामाजिक स्वामित्व होता था। रूस में 1918 में पहली बार सामूहिक खेती शुरू की गई थी। 1929 से 1932 के बीच पूरे रूस में सामूहिक खेती प्रणाली लागू कर दी गई थी। लेकिन ज़्यादातर किसानों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा। सामूहिक खेती का सिद्धान्त असफल हो गया। आज इसे ख़राब संचालन का एक उदाहरण माना जाता है।
कलाशनिकफ़
मिख़ाइल कलाशनिकफ़। स्रोत : AP
दुनिया के सभी आग्नेय अस्त्रों में कलाशनिकफ़ रायफ़ल को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसका आधिकारिक नाम एके-47 रायफ़ल है। लेकिन चूँकि मिख़ाइल कलाशनिकफ़ ने बीस वर्ष की उम्र में द्वितीय विश्वयुद्ध के आरम्भ में इस रायफ़ल का आविष्कार किया था, इसलिए इसे उनके नाम से भी पुकारा और जाना जाता है। 1947 में एके रायफ़ल का पहला मॉडल सामने आया था और 1949 में इसे सोवियत सेना में शामिल कर लिया गया था। इसके बाद यह एके रायफ़ल दुनिया की बहुत-सी सेनाओं का हथियार बन गई। दिसम्बर 2013 में एके रायफ़ल के आविष्कारक मिख़ाइल कलाशनिकफ़ का 95 वर्ष की उम्र में देहान्त हो गया।
स्पूतनिक
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बीसवीं सदी के मध्य तक रूसी भाषा में ’स्पूतनिक’ शब्द का मतलब था — सहयात्री। लेकिन 4 अक्तूबर 1957 को सोवियत संघ ने पहला रूसी उपग्रह अन्तरिक्ष में छोड़ा और उसको नाम दिया — स्पूतनिक। इसके बाद अन्तरिक्ष में छोड़े जाने वाले उन कृत्रिम उपग्रहों को ’स्पूतनिक’ कहा जाने लगा जो पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। दुनिया की बहुत-सी भाषाओं में उपग्रह के लिए ’स्पूतनिक’ शब्द का ही इस्तेमाल होता है। अन्तरिक्ष में स्पूतनिक की स्थापना के साथ ही मानवजाति ने अन्तरिक्ष-युग में क़दम रखा था और राजनीतिक रूप से दुनिया में सोवियत संघ का महत्व बहुत बढ़ गया था क्योंकि इससे पहले रूस को प्रौद्योगिक रूप से एक पिछड़ा हुआ देश माना जाता था।
ब्लिनी
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तवे पर बनाए जाने वाले पतले-पतले मालपुओं को रूसी भाषा में ब्लिनी कहा जाता है। रूस में ब्लिनी एक प्राचीन पकवान माना जाता है, जिसे रूसी जाति व जनजातियों के लोग तब भी बनाया और खाया करते थे, जब वे प्रकृति-पूजक थे। ब्लिनी रूस में सूर्य का प्रतीक मानी जाती थी और धार्मिक व सामाजिक रीति-रिवाजों में ब्लिनी का विशेष महत्व था। रूस में ’मास्लिनित्सा’ त्यौहार के अवसर पर विशेष रूप से ब्लिनी पकाई जाती है। इसके अलावा मृत्युभोजों में ब्लिनी परोसी जाती है।
बोल्शेविक
लेनिन की मूर्त्ति। स्रोत: Alexei Danichev/RIA Novosti
बोल्शेविक (बल्शिवीक) सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य को कहते थे। रूसी सामाजिक-लोकतान्त्रिक मज़दूर पार्टी के प्रारम्भिक अधिवेशनों में से एक अधिवेशन में यह शब्द तब सामने आया था, जब एक प्रमुख सवाल पर हुए मतदान में कुछ लोग भारी बहुमत पाकर जीत गए थे। बल्शिवीक का मतलब होता है – बहुमत पाने वाले। ये जीतने वाले लोग तब लेनिन के समर्थक थे। बाद में लेनिन के समर्थकों को बल्शिवीक ही कहा जाने लगा। अल्पमत में रह जाने वाले लोग मिन्शिवीक कहलाए। बाद में जब इस पार्टी का विभाजन हुआ तो पार्टी में बहुमत पाने वाले लोगों को ’बल्शिवीकी’ कहा जाने लगा। अब आम तौर पर सफल बहुमत रखने वाले और श्रेष्ठ परिणाम दिखाने वाले लोगों को ’बल्शिवीक’ कहकर पुकारा जाता है।
बोर्ष
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चुकन्दर और दूसरी सब्ज़ियों से बने सूप को रूस में बोर्ष कहा जाता है। सारी दुनिया में रूसी रेस्टोरेण्टों में और रूसी परिवारों में भी भोजन परोसते हुए सबसे पहले बोर्ष परोसा जाता है। बोर्ष में चुकन्दर की ही भरमार होती है, इसलिए चुकन्दर का स्वाद ही बोर्ष का स्वाद होता है और बोर्ष चुकन्दर के रंग की तरह गहरे लाल रंग का ही होता है। बोर्ष में आम तौर पर ऊपर से एक या दो चम्मच कच्चा मक्खन पड़ा होता है। बोर्ष के साथ लहसुन की फाँक और पम्पूश्की नामकी गोल रोटी खाने के लिए दी जाती है। ठीक-ठीक कहा जाए तो बोर्ष रूसी नहीं, बल्कि उक्रईनी पकवान है। रूस में बोर्ष की तरह के सूप को ही ’षी’ कहा जाता है, जिसमें चुकन्दर की जगह बन्दगोभी की भरमार होती है।
गुलाग
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1930 में सोवियत संघ में राजनीतिक बन्दियों और अपराधियों को रखने के लिए बन्दी शिविर बनाए गए थे, जिन्हें शिविर समूह या गुलाग कहा जाता था। अलिक्सान्दर सलझेनीत्सिन के संस्मरणों की किताब ’अर्ख़िपिलाग गुलाग’ की बदौलत यह शब्द सारी दुनिया में मशहूर हो गया और दमन व अत्याचारों का प्रतीक बन गया। आम तौर पर झूठे बहानों से सोवियत सत्ता अपने राजनीतिक विरोधियों को गिरफ़्तार करके 25 साल तक की लम्बी-लम्बी सज़ाएँ देकर इन बन्दी शिविरों में भेज देती थी। अक्सर इन बन्दियों के परिवार वालों को यह बताया जाता था कि उन्हें दस साल के लिए बन्दी शिविर में भेजा गया है और इन दस वर्षों में बन्दी को पत्र-व्यवहार करने का भी अधिकार नहीं है। इसका मतलब यह होता था कि गिरफ़्तार किए गए व्यक्ति को गोली मार दी गई है।
ज़ार
अन्तिम रूसी ज़ार निकलाय द्वितीय अपने परिवार के साथ। स्रोत : Getty Images / Fotobank
ज़ार (त्सार) — यह रूसी राजा-महाराजाओं को दी जाने वाली उपाधि थी, जो लातिनी भाषा के शब्द ’सेजर’ से बनी है। सन् 1547 में रूसी राजा इवान ग्रोज़्नी (इवान भयानक) ने पहले-पहल यह उपाधि ग्रहण की थी। फिर सन् 1613 से सन् 1917 तक रूस में रमानफ़ राजवंश का शासन रहा। रमानफ़ राजवंश के पहले ज़ार (त्सार) का नाम था मिख़ाइल फ़्योदरविच और अन्तिम ज़ार का नाम था निकलाय द्वितीय। हालाँकि ज़ार निकलाय द्वितीय को 1917 में अपना शासन त्यागना पड़ा था।
इज़्बा
/ Nikolay Korolyoff
ग़रीब किसान का लकड़ी का बना छोटा-सा घर इज़्बा कहलाता है। आम तौर पर लकड़ी के गोल लट्ठों को कुल्हाड़ी से काटकर और एक-दूसरे के साथ जोड़कर ’इज़्बा’ की दीवारें खड़ी की जाती थीं। इज़्बा के प्रवेश द्वार के पास ही घर को गर्म करने के लिए अँगीठी (फ़ायरप्लेस) बनी होती थी। अँगीठी के पास के कोने को ’लालकोना’ कहा जाता था, जहाँ पर दीवार में बने आले में एक छोटा-सा घरेलू मन्दिर बना होता था, जिसमें दैवचित्र रखे रहते थे। इस आले के नीचे ही खाने की मेज़ और बैंचें पड़ी रहती थीं। दीवार के साथ ही चौड़ी खाटनुमा बैंचें होती थीं। बीसवीं सदी में इज़्बा पिछड़ेपन और ग़रीबी का प्रतीक माना जाने लगा। आजकल रेस्टोरेण्टों, कैफ़े और बारों को लोकछवि देने के लिए उनमें इज़्बा बनाए जाते हैं।